#The Kashmir Files Ruckus over Jinnah photo notes and the death toll of Kashmiri Pandits – The Kashmir Files: जिन्ना की फोटो वाले नोट और मरने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या- फिल्म को प्रॉपगैंडा बताने वाले दे रहे कौन-कौन से तर्क, जानिए : Rashtra News
फिल्म द कश्मीर फाइल्स में दिखाए गये कश्मीरी पंडित के आंकड़ों और जिन्ना की फोटो वाली नोट को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं।
फिल्म कश्मीर फाइल्स को लेकर पूरे देश में विवाद खड़ा हो गया है। कुछ लोग इस फिल्म के जरिए प्रोपगैंडा फैलाने का आरोप लगा हैं तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस फिल्म के जरिए कश्मीरी पंडितों की वो सच्चाई सामने आई है जिससे अधिकतर लोग अनजान थे। हालांकि अब फिल्म में दिखाई गये कुछ फैक्ट्स को लेकर आरोप और प्रत्यारोप शुरू हो गया है।
कश्मीरी पंडितों की संख्या को लेकर किया जा रहा है दावा: सोशल मीडिया पर एक पोस्टर खूब वायरल हो रहा है। जिसमें कश्मीर में मारे गये कश्मीरी पंडितों की संख्या को लेकर सवाल खड़े किए गये हैं। पोस्टर में लिखा गया है कि 1989 से अब तक नरसंहार में मारे गये कश्मीरी पंडितों की संख्या विवेक अग्निहोत्री के अनुसार चार हजार है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार ये आंकड़ा 650 है। 1991 में आरएसएस पब्लिकेशन के अनुसार 600 है। जबकि सरकार मानती है कि नरसंहार में मरने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या मात्र 219 है।
जिन्ना की फोटो वाली नोट पर दिया जा रहा है ये तर्क: वहीं दूसरी तरफ एक और सीन को लेकर विवाद खड़ा हो रहा है। फिल्म में एक जगह अनुपम खेर द्वारा जिन्ना की तस्वीर वाली नोट का जिक्र किया गया है। एक दृश्य में अनुपम खेर एक दूकान वाले से कहते हैं कि “नोट पर जिन्ना की जगह गांधी का फोटो क्यों नहीं है? क्या कश्मीर में जिन्ना पर छपे नोट चलते हैं?” फिल्म के इस दृश्य में झूठ फैलाने का आरोप लगाकर तर्क दिया जा रहा है कि “गांधी छाप” वाले नोट 1996 में जारी हुए। 1996 से पहले गांधी की जगह अशोक स्तंभ होता था। जबकि यह फिल्म 1980-90 के दशक की घटनाओं पर आधारित हैं।”
फिल्म को लेकर किए जा रहे इस दावे को लेकर लोग सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। एफ खान नाम के यूजर ने लिखा कि “झूठ बोल कर सनसनी और नफरत फैलाना एक सोची समझी सजीश है। विवेक, बीजेपी सरकार का ऑर्डर फॉलो कर रहे हैं। वो 4000 क्या 40000 भी दिखा देते हैं।” आदित्य मिलन नाम के यूजर ने लिखा कि “219 मारे या 4000, पर सवाल ये उठता है कि इन्हें मारा किसने था? क्या एक भी जान की कीमत कोई चुका सकता है? या ‘सिर्फ’ 219 होने से मारने वाले का गुनाह खत्म हो जाता है?”
एक अन्य यूजर ने लिखा कि “सरकारी आंकड़ों के अनुसार तो ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई मरा ही नहीं, तो आप इसे क्यों नहीं सच मान लेते?” डेविल नाम के यूजर ने लिखा कि “1 अखलाक के लिए किस तरह से रात-दिन एक किए गए थे। तमाम अखबारों के एडिटोरियल पेज रंगे जा रहे थे, भरे जा रहे थे। यहां 100 थे या 6000 या फिर लाख थे, क्या इस आधार पर जजमेंट पास होगा?”
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